कितनी उम्मीदें थी हमें तुमसे,
पर तुमने हमारी आशाओं की परवाह न की।
कितनी खवाहिशें थीं हमारी तुम्हारे दम से,
पर तुमने उनकी कोई कदर न की।
कितने ख़वाब थे पलकों पे हमारे,
पर तुमने हमारे ख़वाबों का गला घोंट दिया।
उडना चाहते थे हम आसमान में तुम्हारे सहारे,
पर तुमने हमारे हिस्से की जमीन भी हमसे छीन लिया।
soulful 🙂
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Thanks a lot Archana 😃
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Poignant!
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Thanks Ravish 😃
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Nice!
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Thanks Amitji 😃
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Profound..beautiful
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Thanks 😃
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you are Welcome 🙂
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